बेगम हजरत महल भारतीय इतिहास, खासकर 1857 की " आज़ादी की पहली लड़ाई" में एक महत्वपूर्ण शख्सियत हैं।
इतिहास की किताबों से उनकी कहानी मिलती है। रोज़ी लेवेलिन-जोन्स की किताब "द लास्ट किंग इन इंडिया: वाजिद अली शाह" में उन्हें अवध के राजा वाजिद अली शाह की बेगम बताते हैं। 1856 में अंग्रेजों द्वारा अवध को हथिया लेने के बाद, उन्होंने 1857 की बगावत में अहम भूमिका निभाई। उनका मजबूत नेतृत्व उन्हें बगावत की एक "निशानी" बनाता है। किताब में बगावत के दौरान उनकी भूमिका और लखनऊ की रक्षा के उनके प्रयासों का विस्तृत ब्यौरा है।
रुद्रांशु मुखर्जी की किताब "अवध इन रिवोल्ट 1857-1858: ए स्टडी ऑफ पॉपुलर रेसिस्टेंस" विद्रोह के कारण बने अवध के हालातों का विश्लेषण करती है। इस दौरान, बेगम हजरत महल का नेतृत्व बगावतियों को "इकट्ठा करने" वाली ताकत के रूप में उभरता है। मुखर्जी उनकी "हुकूमत चलाने" और अंग्रेजों के खिलाफ समर्थन जुटाने की काबिलियत का उल्लेख करते हैं।
वीरा हिल्डेब्रांड की किताब "वीमन इन द इंडियन रिबेलियन ऑफ 1857" में बगावत में महिलाओं की भूमिका पर प्रकाश डाला गया है, जहां बेगम हजरत महल एक प्रमुख शख्सियत हैं। उन्हें एक कुशल नेता के रूप में दिखाया गया है, जिन्होंने न सिर्फ अंग्रेजों से "लड़ी" बल्कि अपने सैनिकों का "हौसला बढ़ाया" और उन्हें "जोड़कर" रखा। उनकी वजह से शुरुआती दौर में सफलता मिली।
अमरेश मिश्रा की किताब "वॉर ऑफ सभ्यताज: इंडिया एडी 1857" बताती है कि बगावत दबाए जाने के बाद, बेगम हजरत महल ने "हथियार नहीं डाले" और नेपाल भाग गईं। वहां उन्होंने "पनाह ली"। मिश्रा की किताब उनके निर्वासन जीवन और औपनिवेशिक शासन के खिलाफ लड़ने वाली एक "आज़ादी की लड़की" के रूप में उनकी विरासत पर जोर देती है।
इन इतिहासकारों के शोध से बेगम हजरत महल की कहानी स्पष्ट होती है। रानी और माँ की भूमिका से लेकर कठिन समय में उनके नेतृत्व तक, उनकी विरासत अंग्रेजों के "जुल्म" के खिलाफ लड़ने वाली एक मजबूत शख्सियत के रूप में स्थापित है। उनकी कहानी, जैसा कि इन किताबों में लिखी गई है, आने वाली पीढ़ियों को "आज़ादी और इंसाफ" के लिए लड़ने की प्रेरणा देती रहेगी।
#इतिहास_की_एक_झलक
Waseem Khan....
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