"छत्रपति शिवाजी महाराज को आगरा की कैद से मुक्त करवाने में कछवाहा राजपूतों का सहयोग"
छत्रपति शिवाजी महाराज और जयपुर के राजा जयसिंह कछवाहा के बीच हुई पुरन्दर की सन्धि के बाद शिवाजी महाराज अपने पुत्र सहित आगरा बुलाये गए, जहां औरंगज़ेब ने उनको कैद करके राद अंदाज खां की निगरानी में रखने का आदेश दिया।
लेकिन राजा जयसिंह के पुत्र कुँवर रामसिंह ने कहा कि "शिवाजी महाराज मेरे पिता के कौल पर यहां आए हैं, इसलिए उनकी जान की हिफाज़त की ज़िम्मेदारी मेरी है। बादशाह को पहले मुझे मारना होगा, उसके बाद वे शिवाजी के साथ जो चाहें करें।" यह सुनकर औरंगज़ेब ने शिवाजी महाराज को कुंवर रामसिंह की निगरानी में रहने की अनुमति दे दी।
शिवाजी महाराज ने कैद में बीमारी का बहाना बनाकर काफी दान करना शुरू किया, उनको धन की आवश्यकता थी, तो कुंवर रामसिंह से 66 हज़ार रुपए लेकर उसकी हुंडी दक्षिण में राजा जयसिंह के पास भिजवा दी, जहां शिवाजी महाराज के वकील ने स्वयं जाकर इस हुंडी के 66 हज़ार रुपए राजा जयसिंह को चुकाए।
एक दिन शिवाजी महाराज अपने पुत्र सहित फलों के बड़े टोकरों में बैठकर कैदमुक्त हुए, तब औरंगज़ेब को पता चला कि इसमें रामसिंह का हाथ था। औरंगज़ेब ने कुंवर रामसिंह की मनसबदारी और दरमाही छीनकर उनका दरबार में प्रवेश निषेध कर दिया।
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