#जब_रानी कर्णावती की रखी मिलते ही मुग़ल बादशाह हुमायूं बंगाल से अपना अभियान अधूरा छोड़कर चले आए।
8 मार्च 1535 में गुजरात के सुल्तान बहादुरशाह ने चित्तौड़गढ़ के किले पर हमला कर दिया था। चित्तौड़ गढ़ की रानी कर्णावती को हुमायूँ का समर्थन हासिल था। हमले की खबर होते ही रानी कर्णावती ने हुमायूँ को राखी भेज मदद मांगी।
#हुमायूं उस वक़्त बंगाल मुहिम पर थे हुमायूं ने ये मुहिम अधूरा छोड़ अपना वादा निभाने के लिए एक बड़ी सेना लेकर चित्तौड़ की ओर चल पड़े। वह जमाना हाथी-घोड़ों की सवारी का था सेना को साथ लेकर सैकड़ों किमी की दूरी तय करना आसान नहीं था और उसमें वक्त लगना लाज़मी भी था।
#हुमायूं चित्तौड़ पहुंचा लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। 8 मार्च 1535 को रानी कर्णवती ने चित्तौड़ की वीरांगनाओं के साथ जौहर कर लिया और आग में समा चुकी थीं। जब यह खबर बादशाह हुमायूं तक पहुंची तो उन्हें रानी कर्णावती को न बचा पाने का बहुत दुख हुआ। हुमायूं ने बहादुर शाह पर हमला किया फ़तह हासिल की और पूरा शासन रानी कर्णवती के उत्तराधिकारी विक्रमजीत सिंह को सौंप दिया।
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