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#बादशाह बाबर से जलने की वजह यह है कि उनके स्ट्रगल ने उन्हे "मध्य एशिया का शहजादा (द प्रिंस ऑफ मिडिल एशिया)" बना दिया।
#उनके पास कुछ भी नही था, वे "फर्गना" और "समरकंद" के बर्फीले रेगिस्तान से सब कुछ हार कर दक्षिण - पूर्व की ओर चल पड़े और आ काबुल धमके। वहां बैठकर "अल - हिंद के हालातों का जायजा ले लिया और "सुलतान इब्राहिम लोदी" से हिंद का तख्त छीनने को निकल पड़े लेकिन रास्ते में ही मालूम हो चला कि काबुल में आपके घर बेटा हुआ है तो "मिर्ज़ा बाबर" इसे अपने लिए "सगुण" माने ओर उनका नाम "मिर्जा हिंदाल" रख दिया, इसके मायने ही "हिंद को फतेह करने वाला" होता है।
#आखिरकार अपनी "तोपों और तुलग्नुमा नीति" की बदौलत, अल - हिंद के आखिरी सुलतान इब्राहिम लोदी से "पानीपत की जंग(1526 ई.)" जीत ली।
#लेकिन इससे मिर्जा बाबर के लिए हिंद के तख्त पर जमे रहने का रास्ता महफूज न था क्युकी "मेवाड़ नरेश राणा सांगा" सभी राजपूत राजाओं को एक कर "दिल्ली" से "हिंदोस्तान" में "हिंदू राज" कायम करने की फिराक में था, तकरीबन 24 राजाओं के एक बहुत बड़े लश्कर के साथ राणा सांगा आगरे से थोड़ा दूर "खानवा के मैदान" में मिर्ज़ा बाबर को खदेड़ने के लिए आ धमके।
उधर से मिर्जा बाबर भी अपने थके - हारे सिपाहियों को लेकर तकरीबन 24 राजपूत राजाओं के लश्कर के मुकाबले अकेले ही आ धमके। (1527 ई.)
#लेकिन मिर्जा बाबर के थके - हारे थोड़े से सिपाहियों ने राजपूतों के विशाल लश्कर से लड़ने से इंकार कर दिया और इस जंग को जीतना नामुमकिन बता दिया लेकिन एक ही ऐसे सिपाही थे जिन्हे भरोसा था कि यह जंग हम ही जीतेंगे। वे थे खुद मिर्ज़ा बाबर जिन्होंने "जिहाद" का नारा बुलंद किया और अपनी फ़ौज को एक "विश्व प्रसिद्ध खुतबा" सुना दिया कि।
#नौ जवानों हमारे बुजुर्ग साहिब ए किरान आमिर तैमूर गुरकान हमसे पहले ही हिंद आ चुके थे, हम उनके ख्वाबों की तामीर करने आए है, सोचो इस अजीम ओ शान मुल्क ए हिंदोस्तान को अपना घर बनाने के बजाए अगर वापस उस फरगना के बर्फीले पहाड़ों पर जाकर क्या करेंगे, हम लड़ते आए है और इस जंग के बाद हिंदोस्तान हमारी मुट्ठी में होगा"
#नौजवानों जलसे के लिए तैयार सोने - चांदी के सामान को तोड़कर गरीबों में तकसीम कर दिया जाए, गजनी से आई शराब में नमक डालकर उसका सिरका बनाकर यमुना में बहा दिया जाए, सल्तनत में न कोई शराब पीएगा, ना खरीदेगा ना कोई बनाएगा। नौजवानों, बैगों, बहादुरों दुनिया में आने वाला हर कोई फना हो जाएगा बचेगा तो सिर्फ जात "अल्लाह" की"
हर की आमद बजहां जे अहले फना खाहद बोवद!
आंके पाइंदा व बाकिस्त खोदा खाहद बोवद !!
#बहादुरों, अल्लाह! ने हमको वो नसीबी दी है कि दीन के लिए जो मरे वो शहीद और जो मारे वो गाज़ी। अब हम सबको 'कुरआन - अल - करीम' पर हाथ रखकर कसम खानी चाहिए कि कोई मौत से ना भागे, इससे पहले कि मौत आ जाए, हम चलकर वो हासिल कर लेते हैं जो हमारी अमानत है, जब तक दम में दम है तब तक इस जंग से मुंह ना फेरे"
इस खुतबे को सुनने के बाद थक्की - हारी तैमूरी फौज (मुगलिया फोज) में इस जंग को जैसे जीतने का जुनून सा जाग गया है। कुरआन पर हाथ रख कर फौज ने कहा कि "इंशाल्लाह! जब तक जिस्म में जान है तब तक जांनिसारी से मुंह न फेरेंगे।"
#फिर क्या था, इस खुत्बे ने हिंद की तारीख को ही बदलकर रख दिया, जंग फजर नमाज पढ़के शुरू की ओर जौहर नमाज तक जंग को जीत ली। हिंद की तारीख में हिंदू शासकों के लिए इससे बुरी शिकस्त कभी नही हुई क्योंकि 24 राजाओं के संगठन के सामने अकेले मिर्जा बाबर खड़े रहे और जीत गए। हिंदू शासकों का भारत में हिंदू राज कायम करने का ख्वाब चिकनाचूर हो गया
इस जंग को जीतने के बाद एशिया बर्रे आजम के शहजादे मिर्ज़ा बाबर सिर्फ मिर्जा न रहकर "शहंशाह ए हिंद कलंदर बादशाह गाज़ी जहीरूद्दीन मुहम्मद बाबर" बन गए।
#हिंद की तारीख में एक ऐसे विशाल साम्राज्य के संस्थापक कहलाए जिनके वारिसों ने 1707 ई. तक इस तैमूरी सल्तनत (मुगल साम्राज्य) को भारतीय इतिहास का सबसे विशाल साम्राज्य बना दिया। इस साम्राज्य ने न केवल हुकूमत की बल्की इस मुल्क को अपना मुल्क, अपना घर बनाकर संवारा, हिंद के लोगों को जीना सिखाया, नई तहजीब दी, नई सभ्यता दी, नई भाषा दी, नए पकवान दिय, नया पहनावा दिया, तजुर्बा दिया, इल्म दिया, ताज दिया, लाल किला दिया जामा मस्जिद दी, किले, मकबरे, मस्जिदें महल और नए शहर दिए और भी न जाने क्या क्या दिया, उनकी झलक आज भी हिंदोस्तानियों के खाने, पीने पहनावे और बोलने में भी झलकती है।
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