वंश सूर्यवंशी मेवाड़ वंश

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🚩मेवाड़  वंश   🚩


🚩🚩🚩क्षत्रिय सिरदारों आज मैं आपको उस वंश के जानकारी प्राप्त कराना चाहता हूं जिसका वंश सूर्यवंशी  , गोत्र वैजवापायन,प्रवर कच्छ, भुज, मेंष, वेद यजुर्वेद ,शाखा  वाजसनेयी,गुरु द्लोचन(वशिष्ठ),ऋषि हरित ,कुलदेवी  बाण माता , कुल देवता श्री सूर्य नारायण,इष्ट देव श्री एकलिंगजी, वॄक्ष  खेजड़ी ,नदी सरयू,झंडा सूर्य युक्त , पुरोहित पालीवचारण – सोदा बारहठ ,ढोल  मेगजीत ,तलवार  अश्वपाल ,बंदूक सिंघल , कटार दल भंजन , नगारा बेरीसाल, पक्षी नील कंठ , निशान  पंच रंगा , निर्वाण रणजीत , घोड़ा श्याम कर्ण,तालाब भोडाला ,विरद चुण्डावत, सारंगदेवोत,घाट सोरम ,ठिकाना भिंडर ,चिन्ह सूर्य , शाखाए 24 है उस वंश का नाम मेवाड़ वंश है जो राजस्थान के दक्षिण - पश्चिम भाग पर गुहिलों का शाषन था। नैणसी री ख्यात में गुहिलों की 24 शाखाओं का वर्णन मिलता है जिनमें मेवाड़, बागड़ और प्रताप शाखा ज्यादा प्रसिद्ध हुई। इन तीनो शाखाओं में मेवाड़ शाखा अधिक महत्वपूर्ण थी।


👏 क्षत्रिय सिरदारों सिसौदिया वंश  वंश की उत्पत्ति के बारे में पहले गोह या गहलोत थी जो बाद में सिसोदिया हुई जिसकी शाखायें गुहिलौत ,सिसोदिया , पीपाड़ा,  मांग्लया , मगरोपा, अजबरया ,  केलवा  ,कुंपा ,भीमल ,घोरण्या , हुल , गोधा अहाड़ा ,नन्दोत ,. सोवा , आशा ,बोढ़ा ,कोढ़ा , करा ,भटेवरा , मुदौत ,धालरया ,कुछेल , दुसन्ध्या  कवेड़ा शाखाए है । इसका इतिहास सन 712 ई. में अरबों ने सिंध पर आधिपत्य जमा कर भारत विजय का मार्ग प्रशस्त किया। इस काल में न तो कोई केन्द्रीय सत्ता थी और न कोई सबल शासक था जो अरबों की इस चुनौती का सामना करता। फ़लतः अरबों ने आक्रमणों की बाढ ला दी और सन 725 ई. में जैसलमेर, मारवाड़, मांडलगढ और भडौच आदि इलाकों पर अपना आधिपत्य जमा लिया। ऐसे लगने लगा कि शीघ्र ही मध्य पूर्व की भांति भारत में भी इस्लाम की तूती बोलने लगेगी। ऐसे समय में दो शक्तियों का प्रादुर्भाव हुआ। एक ओर जहां नागभाट ने जैसलमेर, मारवाड, मांडलगढ से अरबों को खदेड़कर जालौर में प्रतिहार राज्य की नींव डाली, वहां दूसरी ओर बप्पा रायडे ने चित्तौड़ के प्रसिद्ध दुर्ग पर अधिकार कर सन 734 ई. में मेवाड़ में गुहिल वंश अथवा गहलौत वंश का वर्चश्व स्थापित किया और इस प्रकार अरबों के भारत विजय के मनसूबों पर पानी फ़ेर दिया।मेवाड़ का गुहिल वंश संसार के प्राचीनतम राज वंशों में माना जाता है। मेवाड़ राज्य की केन्द्रीय सत्ता का उद्भव स्थल सौराष्ट्र रहा है। जिसकी राजधानी बल्लभीपुर थी और जिसके शासक सूर्यवंशी क्षत्रिय कहलाते थे। यही सत्ता विस्थापन के बाद जब ईडर में स्थापित हुई तो गहलौत मान से प्रचलित हुई। ईडर से मेवाड़ स्थापित होने पर रावल गहलौत हो गई। कालान्तर में इसकी एक शाखा सिसोदे की जागीर की स्थापना करके सिसोदिया हो गई। चूँकि यह केन्द्रीय रावल गहलौत शाखा कनिष्ठ थी। इसलिये इसे राणा की उपाधि मिली। उन दिनों राजपूताना में यह परम्परा थी कि लहुरी शाखा को राणा उपाधि से सम्बोधित किया जाता था। कुछ पीढियों बाद एक युद्ध में रावल शाखा का अन्त हो गया और मेवाड़ की केन्द्रीय सत्ता पर सिसोदिया राणा का आधिपत्य हो गया। केन्द्र और उपकेन्द्र पहचान के लिए केन्द्रीय सत्ता के राणा महाराणा हो गये। गहलौत वंश का इतिहास ही सिसोदिया वंश का इतिहास है व मान्यता है कि सिसोदिया क्षत्रिय भगवान राम के कनिष्ठ पुत्र लव के वंशज हैं। सूर्यवंश के आदि पुरुष की 65 वीं पीढ़ी में भगवान राम हुए 195 वीं पीढ़ी में वृहदंतक हुये। 125 वीं पीढ़ी में सुमित्र हुये। 155 वीं पीढ़ी अर्थात सुमित्र की 30 वीं पीढ़ी में गुहिल हुए जो गहलोत वंश की संस्थापक पुरुष कहलाये। गुहिल से कुछ पीढ़ी पहले कनकसेन हुए जिन्होंने सौराष्ट्र में सूर्यवंश के राज्य की स्थापना की। गुहिल का समय 540 ई. था। बटवारे में लव को श्री राम द्वारा उत्तरी पश्चिमी क्षेत्र मिला जिसकी राजधानी लवकोट थी। जो वर्तमान में लाहौर है। ऐसा कहा जाता है कि कनकसेन लवकोट से ही द्वारका आये। हालांकि वो विश्वस्त प्रमाण नहीं है। टॉड मानते है कि 145 ई. में कनकसेन द्वारका आये तथा वहां अपने राज्य की परमार शासक को पराजित कर स्थापना की जिसे आज सौराष्ट्र क्षेत्र कहा जाता है। 


👏 क्षत्रिय सिरदारों कनकसेन की चौथी पीढ़ी में पराक्रमी शासक सौराष्ट्र के विजय सेन हुए जिन्होंने विजय नगर बसाया। विजय सेन ने विदर्भ की स्थापना की थी। जिसे आज सिहोर कहते हैं। तथा राजधानी बदलकर बल्लभीपुर (वर्तमान भावनगर) बनाया। इस वंश के शासकों की सूची टॉड देते हुए कनकसेन, महामदन सेन, सदन्त सेन, विजय सेन, पद्मादित्य, सेवादित्य, हरादित्य, सूर्यादित्य, सोमादित्य और शिला दित्य बताया। 524 ई. में बल्लभी का अन्तिम शासक शिलादित्य थे। हालांकि कुछ इतिहासकार 766 ई. के बाद शिलादित्य के शासन का पतन मानते हैं। यह पतन पार्थियनों के आक्रमण से हुआ। शिलादित्य की राजधानी पुस्पावती के कोख से जन्मा पुत्र गुहादित्य की सेविका ब्रहामणी कमलावती ने लालन पालन किया। क्योंकि रानी उनके जन्म के साथ ही सती हो गई। गुहादित्य बचपन से ही होनहार था और ईडर के भील मंडालिका की हत्या करके उसके सिहांसन पर बैठ गया तथा उसके नाम से गुहिल, गिहील या गहलौत वंश चल पडा। कर्नल टॉड के अनुसार गुहादित्य की आठ पीढ़ियों ने ईडर पर शासन किया ये निम्न हैं - गुहादित्य, नागादित्य, भागादित्य, दैवादित्य, आसादित्य, कालभोज, गुहादित्य, नागादित्य।इस वंश से आगे जाकर जो शाखा व प्रशाखा हुई हैं, वह निम्न हैं जिसका विशेष वर्णन है जिसकी निम्नलित शाखायें प्रचलित हैं गुहिलौत ,सिसोदिया , पीपाड़ा , मांग्लया ,मगरोपा ,अजबरया , केलवा , कुंपा , भीमल ,घोरण्या , हुल ,गोधा,

अहाड़ा ,नन्दोत ,सोवा ,आशायत ,बोढ़ा ,कोढ़ा ,करा ,भटेवरा ,मुदौत , धालरया , कुछेल ,दुसन्ध्या , कवेड़ा आदि है जिसकी गहलौतों की शाखा सिसोदिया है । यह पहले लाहौर में रहते थे। वहां से बाद में बल्लभीपुर गुजरात में आये । वहीं पर बहुत दिनों तक राज्य करते रहे । वहां का अन्तिम राजा सलावत या शिलादित्य था।बल्लभीपुर नगर को बाद में मुसलमान लुटेरों ने तहस नहस कर दिया था। उसी के वंशज सिलावट कहलाये। राजा शिलादित्य को रानी पुष्पावती ( पिता चन्द्रावत परमार वंश से ) जो गर्भ से थी।अम्बिकादेवी के मन्दिर में पूजन करने गई थी। जब रास्ते में उसने सुना कि राज्य नष्ट हो गया है और शिलादित्य वीरगति को प्राप्त कर चुके हैं तो वह भागकर मलियागिरी की खोह में चली गई। उसके वहाँ पुत्र उत्पन्न हुआ। रानी ने अपनी एक सखी महंत की लड़की कलावती को इस लड़के को सौंपकर कहा कि मैं तो सती होती हु,  तुम इस लड़के का पालन-पोषण करना और इसकी शादी किसी राजपूत लड़की से कराना । इसके बाद रानी सती हो गई गोह या खोह में जन्म लेने के कारण इस लड़के का नाम गुहा रखा जिससे गहलोत वंश प्रसिद्ध हुआ जो जेम्स टाड़ राजस्थान व क्षत्रिय दर्पण से लिया गया है व  महाराणा प्रतापसिह के छोटे भाई शक्तिसिंह से शक्तावत/सलखावत गोत्र की शाखा निकली है जिस का अपभ्रंश सिलावत माना जाता है ।नेपाल के इतिहास में सिलावट जाति के बारे में वर्णन है और जैसलमेर के इतिहास में जातियों के वर्णन में सिलावट के बारे में लिखा है कि वहाँ पर ये जातियाँ आबाद हैं । इस गोत्र को नीचे लिखी उप-शाखाएँ (खाप) हैं। दो गांव की सिलावट , कुतानी की , सकीतड़ा की ,बशीरपुर की , पपर की ,नाटोली की , लहटा की ,कवारदे की ,सेकी , रिठोड़ा की ,उदय की उप शाखाएँ गांवों के नाम पर प्रचलित हैं इसमे मूलतः इनमें कोई भेद नहीं है ।


👍क्षत्रिय सिरदारों नकतवाल सिसौदिया वंश प्रशाखा

अर्थात रावल अनूपसह के लड़के रावल नक्कमल हुए। उन के नाम पर ही नकतवाल गोत्र प्रचलित हुआ । इस गोत्र की निम्नलिखित उप शाखाएँ बाड़ी के  नकतवाल,  मटोली के,  सवड़ी के, मगाबल के, सांधा के तथा  खड़वाल ये सभी उस शाखाएँ गांवों के नाम पर प्रचलित हैं और चिडलिया जो चन्द्रावत या चुंडावत सिसौदिया वंश प्रशाखा अर्थात सिसोदिया वश को एक मशहूर शाखा चन्द्रावत महाराणा मेवाड़ के खानदान से है जो चन्द्रसिंह के नाम से चली है । महाराणा लक्ष्मणसिंह के बेटे अरिसिह का दूसरा बेटा चन्द्रसिंह था. महाराणा चन्द्रसिंह को अत री' का परगना गुजर बसर के लिए दिया गया था। । उसकी सन्तान भोमिया(भिमिधर) लोगों के तौर पर वहां रही । आगे चलकर चन्द्रावत या चुण्डावत नाम से प्रसिद्ध हुई जो इस गोत्र की चंग वारे के चिण्डालिया ,  छणला के , अणा जी के , अण के , चंगवाल के , दनौली के ,जनौली के , पनाह के ये शाखाएँ (खाप) हैं और ये उपशाखायें भी गांव व ठिकानों के नाम से प्रचलित हुई हैं।कुढ़ाया शुद्ध कोढ़ा सिसौदिया वंश प्रशाखा अर्थात मेवाड़ में सिसोदिया की 25 उप शाखाओं में यह गोत्र में 18 पर है । बोलचाल में कोढ़ा से कुढ़ाग्रा बन गया है । इस गोत्र की भी कई खाप 

 नावली के कुढ़ाए  ,जावली के ,उदई के , आस्टोली के , खंडार के ,मोर के है आए और खारवाल सिसौदिया वंश प्रशाखा अर्थात यह जाति विशेष रूप से राजस्थान में आबाद हैं । ने लोग खारी जमीन से नमक बनाया करते थे । खार (नमक) का काम करने से ‘खारवाल ' कहलाये । सन 1885 ई० में जब अंग्रेजी सरकार द्वारा नमक एक्ट लागू कर दिया तब यह लोग नमक का धन्धा छोड़कर खेतीबाड़ी का काम करने लगे वस्तुत: ये राजपूत हैं । मेवाड़ में मुसलमान बादशाहों द्वारा आक्रमण करने पर तथा इन लोगों की पराजय होने पर देश छोड़कर तथा वेश बदलकर अपने को छुपाकर अपनी रक्षा की और नमक बनाने वाले लोगों के साथ मिलकर जीवन निर्वाह किया । अकाल दुभिक्षा के कारण राजस्थान में सन 1961 ई० में हाकार मच गया। उसी कारण ये लोग दूसरे इलाकों में जा बसे। गहलोत राजपूतों के मेवाड़ में राज्य का विस्तार करने के पहले वहाँ जो ब्राह्मण रहते थे, उनमें विधवा विवाह की प्रथा पाई जाती थी । वे उस स्थान के रहने वाले प्राचीन राजपूतों के वंशज थे और उन दिनों में उनको राजस्थान में भूमिया कहा जाता था। पुराने काव्य-ग्रन्थों में चिनानी, खारवार, उत्तायन और दया इत्यादि नामक जातियो का उल्लेख पाया जाता है । उनका सम्बन्ध उन्हीं लोगों के साथ था और  घटरिया सिसौदिया वंश प्रशाखा अर्थात मेवाड़ राज्य में कुम्भलगढ़ एक जिला है । वहाँ पर कुम्भलगढ़ एक प्रसिद्ध किला है, जो चितौड़गढ़ से दूसरे दर्जे पर है । यह किला महाराणा कुम्भा ने बनवाया था । इस किले के अन्दर एक छोटा विला और है जिसे कटारगढ़ कहते हैं। यह किला बड़े किले के अन्दर पहाड़ की चोटी पर बना है । यहाँ पर महाराणा उदय सिंह की महारानी झालीवाई का महल है । कई देवी देवताओं की प्रतियां भी हैं, यह किला ई० 1448 से 1458 तक बना था। इस किले में पहले शहर आबाद था जो अब बिल्कुल विरान हो गया है। इसी किले से निकले हुए राजपूत कटारिया प्रसिद्ध हुए। इस गोत्र की  उप शाखायें 

ऐती के कटारिया, नेवरिया के,  बुढ़ाला के, पोपला के,  फुल के , छनेटी के, पडाती ,  मलIरिके,  सुमेह के ये सभी खापें गांवों के नाम पर पड़ गई हैं और इसके अलावा भैसोड़िया शुद्ध मैतौड़िया सिसौदिया वंश प्रशाखा है अर्थात भेसोड़िया मेवाड़ की एक जागीर है । रावल सिसोदिया रघुनाथसिंह चूंडावत थे। वहीं के निवास वालों को भैसरोड़िया कहने लगे । अशुद्ध रूप से मैं सोड़िया प्रचलित हो गया है । इस गोत्र की कोई उपशाखा नहीं है और नगहबाल सिसौदिया वंश प्रशाखा अन्है के नहवाल,  समेह के, करवा के,  खकेवा के, सखा के खरह के,उप शाखायें हैं जो सभी शाखायें गांवों के नाम पर पड़ी हैं व इसके अलावा मंडार सिसौदिया वंश प्रशाखा है जो मण्डौर के निवास के कारण 'मंडार" शब्द प्रचलित हुआ है ।इस गोत्र की तीन खाप बारह के मंडार, धनेरे के,  भनेरे के है जो  गांवों के नाम पर प्रचलित हुई हैं व नन्दनिया शुद्द नादोत सिसौदिया वंश प्रशाखा है जो सिसोदिया की 25 शाखाओं में से 14वें नम्बर पर नांदोत गोत्र है, उसी का अपभ्रंश नन्दनिया है ।


👏क्षत्रिय सिरदारों सोवड़िया शुद्ध सोवा सिसौदिया वंश प्रशाखा है जो सभी शाखाओं में 15वे नम्बर पर सोवा लिखा है । सोवा का अपनेॉश सोवड़िया या सेड़िया हो गया है । इ ,अतिरिक्त आगे लिखे गोत्र भी हैं, जिनकी कोई खांप नहीं है।बन्दवाड़, समरवाड़, बतानिया,  समोत्या, मथाणिया,  ससोनिया,  कंडीग, रावड़या, कड़ियल,  मुढ़ाल , पानोरिया,  जणनले ,कांडा, नाटा,  नागड़या,  वेडुण्या,तंबर  लखेरिया

इनकी 24 शाखायें तथा अनेक प्रशाखा हैं। जिनका विवरण नहीं लिखा गया है। शाखा प्रसिद्ध पुरुष या स्थान के नाम से होती हैं । शाखा तथा प्रशाखाओं के गोत्र कहीं कहीं इस प्रकार हैं । जेसे वेजपायण प्रवर कक्ष, भुज,मेघ और कहीं-कहीं कश्यप है जैसे अहाडिया हूँगरपुर  , मगलिया मरुभूमि रेगिस्तान, सिसोदिया मेवाड़ में , पीपाड़ा खरवाड़ में ,चांदावत  चन्द्रावत रामपुर राव में , गोरखा नेपाल में मालोजो के वंशज,                                       लुसावा , कृष्णावत दुर्गावत में , नेपाल में मालोजो के वंशज) चूड़ावत  चित्तौड़ में (राणा लाखाजी के वंशज), जगावत पतोजी का जन्म इशी वंश में हुआ था , सांगावत देवगढ़ में ,                                                  का इसी वंश में जन्म हुआ , क्षेमावत राणा मोकालजी प्रतापगढ़ में , सहावत सुह  के धमोधर देवल को खांग में ,जगमलोत जगमल के जासपुर में , कान्हावत  कान्हा जी अमरगढ़,  शक्तावत शक्ति सिंह के भींडर आदि ठिकाना ,राणावत भीमसिंह रण अजमेर के पास टोडा का राजा ,  सूरजमल के                                                                                                                      शाहपुरा के राजाधिरज ,नाथाजी के गोलाबास में , संग्राम सीहोत अर्जुनसिंह के शिवस्त में जो फतेहसिंह जी  उदयपुर 1881 ईस्वी में गद्दी पर विराजमान है ,रुद्रोत रुद्रसिंह के सिरोही के साईं ग्राम में  , नागराजोत नागराज के मालवा से रोल ग्राम में , विरम देवोत वीरमदेव के खनवाड़ा मीरगढ़ और राबाद में , रणमलोत सिसोदिया कल्याणपुर , प्रतापगढ़ आदि नगरों में है । इनके अलावा अन्य  शाखायें हैं जिनका अब कुछ पता नहीं चलता है और हैं भी तो न के बराबर हैं । केलम, घोर धरेनिया, जोदल , मगरारूह, भामेल,रामकोटक, कोटेच, सराह, पाहा, अधर, आदि सोवा, हजरूप,नादोरिया, नादहूत,कत चिरा, दोसूद, वघेवार, पुरुदत्त इत्यादि । गहलौत, सिसोदिया, पीपड़ा आदि राजपूत, राजपूताने में परि हार, राठोड़, कछवाया चौहान वगैरह की कन्या ले ते-देते हैं और आगरा, अलीगढ़, मथुरा आदि जगहों में कछवाया, सोलंकी, पंवार, चौहान, राठौड़ बड़ गूजर,कटहरिया, पुड़ीर सिकरवार वगैरह में लेते व देते हैं।


👏 क्षत्रिय सिरदारों सिसोदिया सूर्यवंशी भारतीय राजपूत जिसका राजस्थान के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है और मेवाङ में सिसौदिया वंश का राज्य की स्थापना राणा राहप के वंशज राणा हमीर ने की थी।सिसोदिया गूहिलौत की निम्न शाखाए व स्थानों की चर्चा की गई है । पहले चंद्रावत जो रामपुरा स्टेट (नीमच), हरिसिंगोत - मालाहेडा, हाडीपिपल्या , दाता,खेत पालिया, थन्देड, उदावत - भाटखेड़ी, घोटा पिपल्या,मोकड़ी सीतारामपुरा, सानकोटड़ा, श्योपुर, पालड़ी, पहाड़ी (जयपुर), जोधासर (बीकानेर), बारानी (नागौर), भाटखेड़ी रावजी, चिकलाना, मोकड़ी, खोर, चपलाणा, जोलाणा, बालोदा, सेमली चंद्रावत, कालूखेड़ा (मध्यप्रदेश) सहित 488 छोटे नीमच-मंदसौर गुना जिले के चंबल किनारे के भरपूर(भरतपुर), सागर(चाचौड़ा गुना मध्य प्रदेश) , सेमली ,गर्दन खेड़ी, ढाबला देवल आदि बड़े गाँवों में बसते है। दूसरे लूंणावत जो मालपुर, कंथारिया, दमाणा, लूंणावतों का खेड़ा, देवास, वाड़द, करनाली, माणस, चंदवास, डोडावली (उदयपुर), बडाखेड़ा, छोटाखेड़ा, मोतीपुरा, गोवलिया, गोपालपुरा (चितौड़गढ़)।तीसरे भाखरोत - पदराड़ा, पुनावली, तरथल, बरोड़िया, खेजड़ी, खेड़िया, सुंदरपुरा, भाखरोतों का खेड़ा आैर गुड़ा, सरेड़ा, पालवास, नागो का खेड़ा (उदयपुर) बौया (गोङवाङ) आदि। चौथे भँवरोत जो मादड़ी गाँव इनका है पर मालूम न हो सका की वो कौनसी है।पांचवे  भूचरोत जो भूचरोतों की खेड़ी, गूपड़ा (उदयपुर), रोडाखेड़ा (गंगापुर, भीलवाड़ा)आदि। छठे सलखावत जो सलखावतों का गुड़ा? (सलूंबर) व सातवे सखरावत - मड़का, जांबोला, आडावला, अकावला, उलपुरा, अरणिया (राजसमंद), अदवास (उदयपुर) व आठवे चूंडावत जो सलूंबर, बेगूँ, आमेट, देवगढ़ अठाना, बराडा, रूपपुर, पालरा का खेडा, सहित 500+ गाँव है व नवे मौजावत जो कठार, आरोली, थला, पीथलपुरा, सबलपुरा सहित 40+ गाँव है व दसवे सारँगदेवोत जो कानोड़, बाठरड़ा, कराणा, पराणा, लक्ष्मणपुरा, कच्छेर, भाणपा, तलाऊ, भूरकिया खुर्द, आसावरा, केसरपुरा, अचलाणा (उदयपुर), मादड़ी, नैनवाड़ा, सिंगटवाड़ा, बाघपुरा (भोमट), देव ऊमगा स्टेट, रणकअ्पी, गड़ बनिया, महुआवा, आंजन, रियासत घटराईन, बेंरी, पेमा, दधपा, बेड़नी, पचोखर, खड़गड़ीहा, बसड़ीहा, कटईया, केताकी, बहुआरा, वारी, सड़कर, विशमभरपुर, बारह, धोपड़ीहा, मदनपुर, केसौर, इमामगंज (जिला आैरंगाबाद, मगध जनपद, बिहार) सहित 100+ गाँव है  व ग्यारहवे दुलावत जो सामल, भाणपुरा, ऊमरणा, ऊमरोद, सिंघाड़ा, भूरवाड़ा, चौकड़ी, कोदवाड़िया, आमली सहित 30+ गाँव है व बारहवे भीमावत जो आँजण खेड़ा गाँव कपासण के पास है लेकिन अब वहाँ ये नहीं हैव तेहरवेभांडावत जो पिराणा, सोमावास, चरलिया, आकोला, बरखेड़ा, फलासिया, नौगाँव, पुनावली (चित्तौड़गढ़), सालरिया (बनेड़ा, भीलवाड़ा) इत्यादि गाँव है व चौदहवे रूदावत जो  पिपलियाँ, सीसोदियाें का गुड़ा, मोरेणा, मेरड़ा, किशनपुरिया, सूरजी का गुड़ा, आकोला, मेहराज्या, बबरिया, कालोर (भीलवाड़ा) आदि गाँव मिले हैव पन्द्रहवें खींवावत (क्षेमावत) जो  प्रतापगढ़ स्टेट, धमोतर, झालामंड (जोधपुर), टेरियाखेड़ी, केरोट, बजरंगगढ़, पित्याखेड़ी (मंदसौर), धारियाखेड़ी, बरभेली, कल्याणपुरा, मोहकमपुरा, बेड़मा, धांधोला, ताजखेड़ी, फलासिया, कटलार, मऊखेड़ी, रीछावरा, गरोदा, देवड़, बरखेड़ी, खारखंडा, डोराणा, आंबीरामा, रामगढ़, पाटनिया, बगरावद, सेमलिया, मोठिया, ग्यासपुर, काजली, सांखथली दोनों, मोडीमुठयी, रायपुर, मानपुरा, मानगढ़, आठिनेरा, कुलथाणा, लालपुरा, नागदेड़ा, रतन्याखेड़ी, मंडावरा, बिलेसरी, पीलू, पिपलियाँ मंदिर, ताल, गुडबेली, मियाला, सरसाई, बेरागांव, सिधपुरा, वरमंडल, अरनोद, रंठाजना व सौलहवे सुरजमलोत जो कुदसू( बीकानेर राजस्थान) व सत्रहवें कीतावत जो  मंडियाणा, भीमल, अजबरा, नाथेला, ऊरिया, मकाता, डिंगेला, जगपुर, कुमावास, अरणिया सहित 50 के ऊपर नीचे गाँवों में है व अठ्ठारहवे

सूआवत जो सेमड़, मदार, सुखवाड़ा (उदयपुर), फतहपुुरा, मेतवाला, देलवाड़ा, सूआवतों का गुड़ा2, गड़ा मौराया, रामपुर, टोकरियाँ, वलड़ा (वागड़) सहित 15 एक गाँव है व उन्नीसवे कुंभावत जो समीचा, तरपाल, कमेरी, कानजी का गुड़ा दोनों, आक्या, किशनपुरिया, कुंडला (बाँसवाड़ा) आदि गाँव पता चले है व बीसवें किशनावत जो किशनावतों की खेड़ी, हरणी दोनों, आेज्यारड़ा, आरणी, अरणिया, लूलास, चौकी (भीलवाड़ा), नेतावल गढ़ पाछली (चितौड़गढ़) के अलावा भी इनके इतने से ज्यादा गाँव है व इक्कीसवें शक्तावत जो भींडर, बानसी बोहेड़ा, विजयपुर, सावर, सेमारी सहित 400 गाँव हो सकते है। कानावत - अमरगढ़, आमल्दा, ऊरण्या, टीटोड़ा जागीर, बाँकरां, बेराँ, ऊपरेड़ा, लांबा, धामण्याँ, बलांड, राज्यास, खैरूणा, निंबाहेड़ा, पालसा, खोलपुरा, मंगलपुरा, सुनारिया खेड़ा सहित 100+ गाँव है व बाइसवे सगरावत जो भदौरा, ऊमरी, बबरोदा, पुरा पोसर, मोडका (गुना, मध्यप्रदेश), गंगपुर सिसवन (सीवान), नरहन (सारण), रूपस (रहीमपुर), कुरसैला (पूर्णिया) बिहार में मुख्य ठिकाने है। जिनमें से रूपस क्षेत्र में हासनचक मनराजसिंह टोला, टोलापर दरबार, कमरापर टोले बाबू राममदिदलसिंह, नीरपुर टोले बाबू सुबालालसिंह, तिनपाय टोला, फौजदारसिंह टोला, टोले बाबू छेदीसिंह, निचला टोला, रामनगर दियारा बाबू कुँवर प्राणसिंह, गंजपुर, मरूआहि, महाजि, कल्याणपुर, लहेरिया टोला, हरनैहिया आदि छुट भाईयों के गाँव है। अगरावत - डाबर कलां, डाबर खुर्द, मालेड़ा (टोंक), मीणों की कोटड़ी (भीलवाड़ा) आदि है।


👏क्षत्रिय सिरदारों तेइसवें राणावत (सिसोदिया गूहिलौत) उदयसिंहोत -जैतसिंहोत जो  लांगच (चितौड़गढ़)व चौबीसवे

वीरमदेवोत जो खैराबाद, हंमीरगढ़, महुवा बड़ा, मंडपिया महाराज, जीत्या जागीर, खेड़ी, निंबोला, बावलास, बांकली, वीरमियास, हासियास, आमा, कोदूकोटा, भोजलाई, गोविंदसिंहजी का खेड़ा, बत्तकों का खेड़ा, मोहब्बतपुरा, भगवतपुरिया (भीलवाड़ा), सनवाड़, कांकरवा, जयवाना, सादड़ी, बंगला, खेड़ा, बासनी कलां, कुराबड़, कल्याणपुर (उदयपुर), पिपलिया, कूंचौली, कुंभलगढ़ (राजसमंद), चौगावड़ी, मेड़ीखेड़ा, भवानीपुरा, पहुँना, सालरिया, थाणा, लांगच, आछोडा (चित्तौड़गढ़)व पच्चीसवें रायसिंहोत जो  मालवा में व छबीसवे जगमालोत जो जामोली, धांधोला, अमरवासी, गांगीथला, धुंवाला, पंचानपुरा, हथौड़ा, हथौड़ी, कुराड़िया, खजूरी, फतहपुरा, बिलेठा, गोरमगढ़, बड़ोदा, राणावतों का खेड़ा (जहाजपुर) उदपुरा, बिंदाकिया (चितौड़गढ़), धोलका, सुजलाना (रतलाम) व सत्ताईसवें

पंचायणोत जो पंचानपुरा, जीलोला, बागवासा, गुड़ा, फतहपुर, उलेला, सुंदरगढ़, बावड़ी, भीमपुरा, भीलड़ी, हाजीवास, सोडियास, दानपुरा, सबलपुरा, गेनहुली, बागड़ी, रूदड़ी, राणावतों का खेड़ा (जहाजपुर), रूद (चितौड़गढ़)व अठ्ठाइसवे सिंहावत जो छापरेड़ (भीलवाड़ा) व उन्नतीसवे

सुरत्राणोत जो  रेड़वास, भवानीसिंहजी का खेड़ा, चावंडिया (भीलवाड़ा) व  तीसवे लूंणकर्णोत जो लालखेङी,गूणेरा व इककतीसवे शार्दूलसिंहोत जो सांडेराव, खीमाड़ा, पोमावा, पुराड़ा, भारूंदा जूना, पराकिया, रोजड़ा, जाणा, दुजाणा, भडली, आकदडा, खरूगड़ा, बड़गाँव, देवली, कलापुर, कानपुरा, जादरी, बिजोवा, बेड़ली, बांगड़ी (गौड़वाड़)व बत्तीसवे महेशदासोत जो  जेमली, राणावतों का गुड़ा, वजाजी का वास (गोगूंदा), बिल्ली, देलवाड़िया, खैराड़िया (राजसमंद), विजयपुर के पास कुछेक गाँव है। (चितौडगढ)ब तैतीसवे रूद्रसिंहोत जो  सैणवास, पिंडवाड़ा, जणापुर, जयापुरा, काछोली, आदरा, ऊंदरा, सांडवाड़ा, सनवाड़ा, काटल (सिरोही)व चौतीसवे नगराजोत जो रोहल खुर्द (मालवा) आबाखेडी (गंगापुर, भीलवाड़ा) सिहाना रोजड़ास व पैतीसवे प्रतापसिंहोत व छतीसवे सहसमलोत जो  धर्यावद, पारेल, खूंता, भांडला, मूंगाणा, हीरावास, कल्याणपुरा, अणत, चरी, गदवास, तिहावतों का खेड़ा (प्रतापगढ़), देवड़ावास (टोंक), करणसर (जयपुर), केसुली (अलवर) व अडतीसवे कचरावत जो जोलावास (उदयपुर) व उनतालिसवे

कल्याणदासोत जो परसाद, गूपड़ा, कल्याणपुर(उदयपुर), देवला, खेडा रोहानिया (वागड) चालीसवे चाँदावत जो  आंजणा, मेहंदुरिया (राजसमंद)व इकतालीसवे शंकरसिंहोत जो बेड़ा, सेणा, रघुनाथपुरा, मुरी, भरावल, खांगड़ी, पालड़ी, फतापुरा, नाणा, चमनपुरा, वीरमपुरा, कागदडा, आमलिया, ऊंदरी, पारड़ा, कुंडाल, नगर, बीजापुर, गुड़ा गुमानसिंह, गुड़ा देवीसिंह, खींदावा, घणावल, (गौड़वाड़) व बियालीसवे हाथीसिंहोत जो वाईस, दांतड़ा, गेंदलियास (भीलवाड़ा) व तियालीसवे रामसिंहोत जो उदलियास, गुपेसरा (भीलवाड़ा), हरपुरा (चितौड़गढ़)व चवालीसवे जसवंतसिंहोत जो  कारूंडा, जलोदा जागीर, सामरड़ा (प्रतापगढ़)व पैतालीसवे अमरसिंहोत ,सुजानसिंहोत जो गांगास (राजसमंद), बड़लियास, सूरास, नाहरगढ़, छोटाखेड़ा, चांदगढ़, शाहपुरा, कनेछण खुर्द, तस्वारिया, चचलानिया, खटवाड़ा, नौगामा, नासरदा, खेड़ा भीमनगर, सेमलिया, सरसूंदा, निंबाहेड़ा, बिसन्या, ठुकरावा, थहनाल, सोमियास, करेड़ (भीलवाड़ा), थाँवला, मानखेड़, भंवरथला (टोंक), देवगढ़ (राजसमंद), सरवाणिया महाराज (नीमच), भुवासा (मध्यप्रदेश), नामली बडौदा (रतलाम)व छियालीसवे भावसिंहोत जो नारेला व सैतालीसवे गरीबदासोत कर्णसिंहोत जो  केरिया, बाँसड़ा, हिसणिया, केमुणिया, बीलिया कलां, अगरपुरा, सुवाणा, रीठ (भीलवाड़ा), पहुँनी, आेछड़ी (चितौड़गढ़), घोसुंडी, कोटड़ी (राजसमंद), रायपुरिया, रामाखेड़ा व अडतालीसवे जगतसिहोत जो तिरोली (मातृकुंडियाँ), पीपलांत्री (राजसमंद), अजबगढ?व  ऊँचासवे राजसिंहोत जो  (भीमसिंहोत) बनेड़ा, हाथीपुरा, पारोली, गेंता, किशनपुरा, गोपालपुरा, जोरावरपुरा, कमालपुरा, रूपपुरा, बरण, कालसांस, पछोरियाखेड़ा (भीलवाड़ा), गणेशपुरा, चावंडिया, शिवपुरिया (जयपुर), पांडुसर, (बीकानेर),नयागाँव ( नागौर) अमला, खाचरोद, बरड़िया, खेड़ावदा, रावदीया, रण

 

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